किसी क्षेत्र के प्राकृतिक पर्यावरण को समझने के लिए तीन मूल तत्त्व आवश्यक हैं:
1. अपवाह
2. स्थलाकृति
3. वायुमंडलीय अवस्था
जलवायु
- एक विशाल क्षेत्र में लंबे समयावधि (30 वर्ष से अधिक) में मौसम की अवस्थाओं तथा विविधताओं का कुल योग ही जलवायु है।
मौसम
- एक विशेष समय में एक क्षेत्र के वायुमंडल की अवस्था को बताता है।
मौसम तथा जलवायु के तत्त्व
1. तापमान
2. वायुमंडलीय दाब
3. पवन
4. आर्द्रता
5. वर्षण
- मौसम की अवस्था प्रायः एक दिन में ही कई बार बदलती है।
- लेकिन फिर भी कुछ सप्ताह, महीनों तक वायुमंडलीय अवस्था लगभग एक समान ही बनी रहती है, जैसे दिन गर्म या ठंडे, हवादार या शांत, आसमान बादलों से घिरा या साफ तथा आर्द्र या शुष्क हो सकते हैं।
- महीनों के औसत वायुमंडलीय अवस्था के आधार पर वर्ष को ग्रीष्म/शीत या वर्षा ऋतुओं में विभाजित किया गया है।
- मानसून शब्द की व्युत्पत्ति अरबी शब्द 'मौसिम' से हुई है, जिसका शाब्दिक अर्थ है- मौसम।
- मानसून का अर्थ, एक वर्ष के दौरान के अनुसार परिवर्तन है।
- भारत की जलवायु को मानसूनी जलवायु कहा जाता है।
- एशिया में इस प्रकार की जलवायु मुख्यतः दक्षिण तथा दक्षिण-पूर्व में पाई जाती है।
- गर्मियों में, राजस्थान के मरुस्थल में कुछ स्थानों का तापमान लगभग 50° से० तक पहुँच जाता है, जबकि जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में तापमान लगभग 20° से० रहता है।
- सर्दी की रात में, जम्मू-कश्मीर में द्रास का तापमान -45° से० तक हो सकता है, जबकि थिरुवनंथपुरम् में यह 22° से हो सकता है।
- कुछ क्षेत्रों में रात एवं दिन के तापमान में बहुत अधिक अंतर होता है।
- थार के मरुस्थल में दिन का तापमान 50° से तक हो सकता है, जबकि उसी रात यह नीचे गिर कर 15 से तक पहुँच सकता है।
- दूसरी ओर, केरल या अंडमान एवं निकोबार में दिन तथा रात का तापमान लगभग समान ही रहता है।
- हिमालय में वर्षण अधिकतर हिम के रूप में होता है तथा देश के शेष भाग में यह वर्षा के रूप में होता है।
- वार्षिक वर्षण में भिन्नता मेघालय में 400 से०मी० से लेकर लद्दाख एवं पश्चिमी राजस्थान में यह 10 से०मी० से भी कम होती है।
- देश के अधिकतर भागों में जून से सितंबर तक वर्षा होती है, लेकिन कुछ क्षेत्रों जैसे तमिलनाडु तट पर अधिकतर वर्षा अक्टूबर एवं नवंबर में होती है।
- सामान्य रूप से तटीय क्षेत्रों के तापमान में अंतर कम होता है।
- देश के आंतरिक भागों में मौसमी या ऋतुनिष्ठ अंतर अधिक होता है।
- उत्तरी मैदान में वर्षा की मात्रा सामान्यतः पूर्व से पश्चिम की ओर घटती जाती है।
- ये भिन्नताएँ लोगों के जीवन में विविधता लाती हैं, जो उनके भोजन, वस्त्र और घरों के प्रकार में दिखती हैं।
जलवायवी नियंत्रण
किसी भी क्षेत्र की जलवायु को नियंत्रित करने वाले छः प्रमुख कारक हैं-
1. अक्षांश
2. तुंगता (ऊँचाई)
3. वायु वाब एवं पवन तंत्र
4. समुद्र से दूरी
5. महासागरीय धाराएँ
6. उच्चावच
अक्षांश
- पृथ्वी की गोलाई के कारण, इसे प्राप्त सौर ऊर्जा की मात्रा अक्षांशों के अनुसार अलग-अलग होती है।
- इससे तापमान विषुवत वृत्त से ध्रुवों की ओर सामान्यतः घटता जाता है।
ऊँचाई
- जब कोई व्यक्ति पृथ्वी की सतह से ऊँचाई की ओर जाता है, तो वायुमंडल की सघनता कम हो जाती है तथा तापमान घट जाता है।
- इसलिए पहाड़ियाँ गर्मी के मौसम में भी ठंडी होती हैं।
- किसी भी क्षेत्र का वायु दाब एवं पवन तंत्र उस स्थान के अक्षांश तथा ऊँचाई पर निर्भर करती है।
वायु वाब एवं पवन तंत्र
- यह तापमान एवं वर्षा के वितरण को प्रभावित करता है।
समुद्र
- समुद्र का जलवायु पर समकारी प्रभाव पड़ता है, जैसे-जैसे समुद्र से दूरी बढ़ती है यह प्रभाव कम होता जाता है एवं लोग विषम मौसमी अवस्थाओं को महसूस करते हैं।
- इसे महाद्वीपीय अवस्था (गर्मी में बहुत अधिक गर्म एवं सर्दी में बहुत अधिक ठंडा) कहते हैं।
महासागरीय धाराएँ
- महासागरीय धाराएँ समुद्र से तट की ओर चलने वाली हवाओं के साथ तटीय क्षेत्रों की जलवायु को प्रभावित करती हैं।
- उदाहरण के लिए, कोई भी तटीय क्षेत्र जहाँ गर्म या ठंडी जलधाराएँ बहती हैं और वायु की दिशा समुद्र से तट की ओर हो, तब वह तट गर्म या ठंडा हो जाएगा।
उच्चावच
- किसी स्थान की जलवायु को निर्धारित करने में उच्चावच की भी महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है।
- ऊँचे पर्वत ठंडी अथवा गर्म वायु को अवरोधित करते हैं।
- यदि उनकी ऊँचाई इतनी हो कि वे वर्षा लाने वाली वायु के रास्तों को रोकने में सक्षम होते हैं, तो ये उस क्षेत्र में वर्षा का कारण भी बन सकते हैं।
- पर्वतों के पवनविमुख ढाल अपेक्षाकृत सूखे रहते हैं।
भारत की जलवायु को प्रभावित करने वाले कारक
अक्षांश
- कर्क वृत्त देश के मध्य भाग, पश्चिम में कच्छ के रन से लेकर पूर्व में मिजोरम, से होकर गुजरती है।
- देश का लगभग आधा भाग कर्क वृत्त के दक्षिण में स्थित है. जो उष्ण कटिबंधीय क्षेत्र है।
- कर्क वृत्त के उत्तर में स्थित शेष भाग उपोष्ण कटिबंधीय है।
- इसलिए भारत की जलवायु में उष्ण कटिबंधीय जलवायु एवं उपोष्ण कटिबंधीय जलवायु दोनों की विशेषताएँ उपस्थित हैं।
ऊँचाई
- भारत के उत्तर में हिमालय पर्वत है।
- इसकी औसत ऊँचाई लगभग 6,000 मीटर है।
- भारत का तटीय क्षेत्र भी विशाल है, जहाँ अधिकतम ऊँचाई लगभग 30 मीटर है।
- हिमालय मध्य एशिया से आने वाली ठंडी हवाओं को भारतीय उपमहाद्वीप में प्रवेश करने से रोकता है।
- इन्हीं पर्वतों के कारण इस क्षेत्र में मध्य एशिया की तुलना में ठंड कम पड़ती है।
वायु दाब एवं पवन
- भारत में जलवायु तथा संबंधित मौसमी अवस्थाएँ निम्नलिखित वायुमंडलीय अवस्थाओं से संचालित होती हैं :
- वायु दाब एवं धरातलीय पवनें
- पश्चिमी चक्रवाती विक्षोभ एवं उष्ण कटिबंधीय चक्रवात
- भारत, उत्तर-पूर्वी व्यापारिक पवनों (Trade Winds) वाले क्षेत्र में स्थित है।
- ये पवनें उत्तरी गोलार्द्ध के उपोष्ण कटिबंधीय उच्च दाब पट्टियों से उत्पन्न होती हैं।
- ये दक्षिण की ओर बहती, कोरिआलिस बल के कारण दाहिनी ओर विक्षेपित होकर विषुवतीय निम्न दाब वाले क्षेत्रों की ओर बढ़ती हैं।
- सामान्यतः इन पवनों में नमी की मात्रा बहुत कम होती है, क्योंकि ये स्थलीय भागों पर उत्पन्न होती हैं एवं बहती हैं।
- इसलिए इन पवनों के द्वारा वर्षा कम या नहीं होती है।
- भारत की वायु दाब एवं पवन तंत्र अद्वितीय है।
- शीत ऋतु में, हिमालय के उत्तर में उच्च दाब होता है।
- इस क्षेत्र की ठंडी शुष्क हवाएँ दक्षिण में निम्न दाब वाले महासागरीय क्षेत्र के ऊपर बहती हैं।
- ग्रीष्म ऋतु में, आंतरिक एशिया एवं उत्तर-पूर्वी भारत के ऊपर निम्न दाब का क्षेत्र उत्पन्न हो जाता है।
- इसके कारण गर्मी के दिनों में वायु की दिशा पूरी तरह से परिवर्तित हो जाती है।
- वायु दक्षिण में स्थित हिंद महासागर के उच्च दाब वाले क्षेत्र से दक्षिण-पूर्वी दिशा में बहते हुए विषुवत् वृत्त को पार कर दाहिनी ओर मुड़ते हुए भारतीय उपमहाद्वीप पर स्थित निम्न दाब की ओर बहने लगती हैं
- इन्हें दक्षिण-पश्चिम मानसून पवनों के नाम से जाना जाता है।
- ये पवनें, कोष्ण महासागरों के ऊपर से बहती हैं, नमी ग्रहण करती हैं तथा भारत की मुख्य भूमि पर वर्षा करती हैं।
ऋतुएँ
- मानसूनी जलवायु की विशेषता एक विशिष्ट मौसमी प्रतिरूप होता है।
- एक ऋतु से दूसरे ऋतु में मौसम की अवस्थाओं में बहुत अधिक परिवर्तन होता है।
- ये परिवर्तन अधिक मात्रा में परिलक्षित होते हैं।
- भारत में मुख्यतः चार ऋतुओं को पहचाना जा सकता है:-
1. शीत ऋतु
2. ग्रीष्म ऋतु
3. मानसून के आगमन का काल
4. मानसून की वापसी का काल।
शीत ऋतु
- उत्तरी भारत में शीत ऋतु मध्य नवंबर से आरंभ होकर फरवरी तक रहती है।
- भारत के उत्तरी भाग में दिसंबर एवं जनवरी सबसे ठंडे महीने होते हैं।
- तापमान दक्षिण से उत्तर की ओर बढ़ने पर घटता जाता है।
- पूर्वी तट पर चेन्नई का औसत तापमान 24 सेल्सियस से 25° सेल्सियस के बीच होता है, जबकि उत्तरी मैदान में यह 10° सेल्सियस से 15 सेल्सियस के बीच होता है।
- दिन गर्म तथा रातें ठंडी होती हैं।
- उत्तर में तुषारापात सामान्य है तथा हिमालय के उपरी ढालों पर हिमपात होता है।
- देश में उत्तर-पूर्वी व्यापारिक पवनें प्रवाहित होती हैं।
- ये स्थल से समुद्र की ओर बहती हैं तथा इसलिए देश के अधिकतर भाग में शुष्क मौसम होता है।
- इन पवनों के कारण कुछ मात्रा में वर्षा तमिलनाडु के तट पर होती है, क्योंकि वहाँ ये पवनें समुद्र से स्थल की ओर बहती हैं।
- देश के उत्तरी भाग में, एक कमजोर उच्च दाब का क्षेत्र बन जाता है, जिसमें हल्की पवनें इस क्षेत्र से बाहर की ओर प्रवाहित होती हैं।
- उच्चावच से प्रभावित होकर ये पवन पश्चिम तथा उत्तर-पश्चिम से गंगा घाटी में बहती हैं।
- इस मौसम में आसमान साफ, तापमान तथा आर्द्रता कम एवं पवनें शिथिल होती हैं।
- शीत ऋतु में उत्तरी मैदानों में पश्चिम एवं उत्तर-पश्चिम से चक्रवाती विक्षोभ का अंतर्वाह विशेष लक्षण है।
- यह कम दाब वाली प्रणाली भूमध्यसागर एवं पश्चिमी एशिया के ऊपर उत्पन्न होती है तथा पश्चिमी पवनों के साथ भारत में प्रवेश करती है।
- इसके कारण शीतकाल में मैदानों में वर्षा होती है तथा पर्वतों पर हिमपात, जिसकी उस समय बहुत अधिक आवश्यकता होती है।
- शीतकाल में वर्षा, जिसे स्थानीय तौर पर 'महावट' कहा जाता है।
- ये रबी फसलों के लिए बहुत ही महत्त्वपूर्ण होती है।
ग्रीष्म ऋतु
- मार्च से मई तक भारत में ग्रीष्म ऋतु होती है।
- मार्च में दक्कन के पठार का उच्च तापमान लगभग 38° सेल्सियस होता है।
- अप्रैल में मध्य प्रदेश एवं गुजरात का वापमान लगभग 42' सेल्सियस होता है।
- मई में देश के उत्तर पश्चिमी भागों का तापमान समान्यतः 45° सेल्सियस होता है।
- प्रायद्वीपीय भारत में समुद्री प्रभाव के कारण तापमान कम होता है।
- देश के उत्तरी भाग में, ग्रीष्मकाल में तापमान में वृद्धि होती है तथा वायु दाब में कमी आती है।
- मई के अंत में, उत्तर-पश्चिम में थार के रेगिस्तान से लेकर पूर्व एवं दक्षिण-पूर्व में पठना तथा छोटा नागपुर पठार तक एक
- कम दाब का लंबवत क्षेत्र उत्पन्न होता है। पवन का परिसंचरण इस गर्त के चारों ओर प्रारंभ होता है।
- लू:- ये धूल भरी गर्म एवं शुष्क पवनें होती हैं, जो कि दिन के समय भारत के उत्तर एवं उत्तर-पश्चिमी क्षेत्रों में चलती हैं।
- कभी-कभी ये देर शाम तक जारी रहती हैं।
- इस हवा का सीधा प्रभाव घातक भी हो सकता है।
- उत्तरी भारत में मई महीने के दौरान सामान्यतः धूल भरी आँधियाँ आती हैं।
- ये आँधियाँ अस्थायी रूप से आराम पहुँचाती हैं, क्योंकि ये तापमान को कम कर देती हैं तथा अपने साथ ठंडे समीर एवं हल्की वर्षा लाती हैं।
- इस मौसम में कभी-कभी तीव्र हवाओं के साथ गरज वाली मूसलाधार वर्षा भी होती है, इसके साथ प्रायः हिम वृष्टि भी होती है।
- वैशाख के महीने में होने के कारण पश्चिम बंगाल में इसे 'काल वैशाखी' कहा जाता है।
- ग्रीष्म ऋतु के अंत में कर्नाटक एवं केरल में प्रायः पूर्व-मानसूनी वर्षा होती है।
- इसके कारण आम जल्दी पक जाते है तथा प्रायः इसे 'आम्र वर्षा' भी कहा जाता है।
वर्षा ऋतु या मानसून का आगमन
- जून के प्रारंभ में उत्तरी मैदानों में निम्न दाब की अवस्था तीव्र हो जाती है।
- यह दक्षिणी गोलार्द्ध की व्यापारिक पवनों को आकर्षित करता है।
- ये दक्षिण-पूर्व व्यापारिक पवनें, दक्षिणी समुद्रों के उपोष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में उत्पन्न होती हैं।
- ये पवनें गर्म महासागरों के ऊपर से होकर गुजरती हैं, इसलिए ये अपने साथ इस महाद्वीप में बहुत अधिक मात्रा में नमी लाती हैं।
- ये पवनें तीव्र होती हैं तथा 30 किमी प्रति घंटे के औसत गति से चलती हैं।
- सुदूर उत्तर-पूर्वी भाग को छोड़कर ये मानसूनी पवनें देश के शेष भाग में लगभग महीने में पहुँच जाती हैं।
- दक्षिण-पश्चिम मानसून का भारत में अंतर्वाह यहाँ के मौसम को पूरी तरह परिवर्तित कर देता है।
- मौसम के प्रारंभ में पश्चिम घाट के पवनमुखी भागों में भारी वर्षा (लगभग 250 सेमी से अधिक) होती है।
- दक्कन का पठार एवं मध्य प्रदेश के कुछ भाग में भी वर्षा होती है।
- इस मौसम की अधिकतर वर्षा देश के उत्तर-पूर्वी भागों में होती है।
- खासी पहाड़ी के दक्षिणी श्रृंखलाओं में स्थित मासिनराम विश्व में सबसे अधिक औसत वर्षा प्राप्त करता है।
- गंगा की घाटी में पूर्व से पश्चिम की ओर वर्षा की मात्रा घटती जाती है।
- राजस्थान एवं गुजरात के कुछ भागों में बहुत कम वर्षा होती है।
मानसून की वापसी (परिवर्तनीय मौसम)
- अक्तूबर-नवंबर के दौरान दक्षिण की तरफ सूर्य के आभासी गति के कारण मानसून गर्त या निम्न दाब वाला गर्त, उत्तरी मैदानों के ऊपर शिथिल हो जाता है।
- धीरे-धीरे उच्च दाब प्रणाली इसका स्थान ले लेती है।
- दक्षिण-पश्चिम मानसून शिथिल हो जाते हैं तथा धीरे-धीरे पीछे की ओर हटने लगते हैं।
- अक्तूबर के प्रारंभ में मानसून पवनें उत्तर के मैदान से हट जाती हैं।
- अक्तूबर एवं नवंबर का महीना, गर्म वर्षा ऋतु से शीत ऋतु में परिवर्तन का काल होता है।
- मानसून की वापसी होने से आसमान साफ एवं तापमान में वृद्धि हो जाती है।
- दिन का तापमान उच्च होता है, जबकि रातें ठंडी एवं सुहावनी होती हैं।
- स्थल अभी भी आर्द्र होता है।
- उच्च तापमान एवं आर्द्रता वाली अवस्था के कारण दिन का मौसम असह्य हो जाता है।
- इसे सामान्यतः 'क्वार की उमस' के नाम से जाना जाता है।
- अक्तूबर के उत्तरार्द्ध में, विशेषकर उत्तरी भारत में तापमान तेजी से गिरने लगता है।
- नवंबर निम्न दाब वाली अवस्था बंगाल की खाड़ी पर स्थानांतरित हो जाती है।
- यह स्थानांतरण चक्रवाती निम्न दाब से संबंधित होता है, जो कि अंडमान सागर के ऊपर उत्पन्न होता है।
- ये चक्रवात सामान्यतः भारत के पूर्वी तट को पार करते हैं, जिनके कारण व्यापक एवं भारी वर्षा होती है।
- ये उष्ण कटिबंधीय चक्रवात प्रायः विनाशकारी होते हैं।
- गोदावरी, कृष्णा एवं कावेरी नदियों के सघन आबादी वाले डेल्टा प्रदेशों में अक्सर चक्रवात आते हैं, जिसके कारण बड़े पैमाने पर जान एवं माल की क्षति होती है।
- कभी-कभी ये चक्रवात उड़ीसा, पश्चिम बंगाल एवं बांग्लादेश के तटीय क्षेत्रों में भी पहुँच जाते हैं।
- कोरोमंडल तट पर अधिकतर वर्षा इन्हीं चक्रवातों तथा अवदाबों से होती हैं।
वर्षा का वितरण
- पश्चिमी तट के भागों एवं उत्तर-पूर्वी भारत में लगभग 400 सें॰मी॰ वार्षिक वर्षा होती है किंतु, पश्चिमी राजस्थान एवं इससे सटे पंजाब, हरियाणा एवं गुजरात के भागों में 60 सेंमी से भी कम वर्षा होती है।
- दक्षिणी पठार के आंतरिक भागों एवं सहयाद्री के पूर्व में भी वर्षा की मात्रा समान रूप से कम होती है।
- जम्मू-कश्मीर के लेह में भी वर्षण की मात्रा काफी कम होती है।
- देश के शेष हिस्से में वर्षा की मात्रा मध्यम रहती है।
- हिमपात हिमालयी क्षेत्रों तक ही सीमित होता है।
मानसून - एकता का परिचायक
- हिमालय अत्यंत ठंडी पवनों से भारतीय उपमहाद्वीप की रक्षा करता है।
- उच्च अक्षांशों के बावजूद उत्तरी भारत में निरंतर ऊँचा तापमान बना रहता है।
- इसी प्रकार प्रायद्वीपीय पठार में तीनों ओर से समुद्रों के प्रभाव के कारण न तो अधिक गर्मी पड़ती है और न अधिक सर्दी।
- इस समकारी प्रभाव के कारण तापमान की दिशाओं में बहुत कम अंतर पाए जाते हैं।
- परंतु फिर भी भारतीय प्रायद्वीप पर मानसून की एकता का प्रभाव बहुत ही स्पष्ट है।
- पवन की दिशाओं का ऋतुओं के अनुसार परिवर्तन तथा उनसे संबंधित ऋतु की दशाएँ ऋतु चक्रों को एक लय प्रदान करती हैं।
- वर्षा की अनिश्चितताएँ तथा उसका असमान वितरण मानसून का एक विशिष्ट लक्षण है।
- संपूर्ण भारतीय भूदृश्य, इसके जीव तथा वनस्पति, इसका कृषि-चक्र, मानव-जीवन तथा उनके त्यौहार-उत्सव, सभी इस मानसूनी लय के चारों ओर घूम रहे हैं।
- उत्तर से दक्षिण तथा पूर्व से पश्चिम तक संपूर्ण भारतवासी प्रति वर्ष मानसून के आगमन की प्रतीक्षा करते हैं।
- ये मानसूनी पवनें हमें जल प्रदान कर कृषि की प्रक्रिया में तेजी लाती हैं एवं संपूर्ण देश को एक सूत्र में बाँधती हैं।
- नदी घाटियाँ जो इन जलों का संवहन करती हैं, उन्हें भी एक नदी घाटी इकाई का नाम दिया जाता है।